भारतीय अर्थतंत्र का दलित परिप्रेक्ष्य
तिवारी, ए.पी. (2001) भारतीय अर्थतंत्र का दलित परिप्रेक्ष्य मूल प्रश्न. pp. 14-16.
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Introduction
लेख भारतीय समाज और अर्थतंत्र में दलितों की स्थितियों और भूमिकाओं पर विचार करता है। लेखक पाता है कि औपनिवेशिक काल से ही दलितों को ब्राह्मणवादी परम्परा में शामिल करने के प्रयास किए गए और आज़ादी के बाद संवैधानिक अधिकार मिलने के बाद भी उनका अपेक्षित विकास नहीं हो सका। दूसरी तरफ़ दलितों का एक हिस्सा लगातार सचेत हुआ और राजनीतिक तौर पर सक्षम हो रहा है, लेकिन अधिकांश की स्थिति में अपेक्षाकृत बदलाव भी नहीं हुए हैं। दलितों के भीतर इस असमान और अधूरे विकास को लेख रेखांकित करते हुए कुछ उपाय सुझाता है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Economics History |
Programme: | Works of Partner Organisations > Moolprashna > Moolprashna |
Creators(English): | A.P.Tiwari |
Publisher: | Mool Prashna |
Journal or Publication Title(English): | Mool Prashna |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3150 |
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Disclaimer
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ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.