स्वच्छ भारत अभियान : कितने सारे मौन?
गाताडे, सुभाष (2015) स्वच्छ भारत अभियान : कितने सारे मौन? प्रतिमान, 3 (1). pp. 46-63.
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Introduction
इस लेख में स्वच्छ भारत अभियान को ध्यान में रखते हुए सदियों से सफ़ाई कार्य में लगे लोगों की स्थिति पर आलोचनात्मक चिन्तन प्रस्तुत किया गया है। एक मोटे अनुमान के तौर पर एक जाति विशेष के लोग शहर के कूड़ा प्रबन्धन में अहम् भूमिका अदा करते हैं। उनके बिना शहर ठप्प हो सकता है। इस लेख में लेखक का सरोकार यह दिखाना है कि 'स्वच्छ भारत अभियान' जैसे सरल से दिखने वाले नारे आकर्षक अवश्य जान पड़ते हैं मगर उनके साथ एक अन्देशा हमेशा रहता है कि उनका सतहीपन व्यापक जटिल यथार्थ को समेटने में नाकाम होकर ऐतिहासिक विषमताओं, अन्यायों और नस्लवाद के आधुनिक रूपों को नई मज़बूती प्रदान न करने लगे। यहाँ इस सवाल को भी पेश किया गया है कि अगर ऐसा होता है, तो क्या वह सप्रयास है या फ़िर आदतन ऐसा हो रहा है?
Item Type: | Article |
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Discipline: | Development Studies |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Subhash Gatade |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3239 |
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Disclaimer
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ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.