संविधान की एक उत्तर-कथा : नीति निर्देशक सिद्धान्त मौलिक अधिकार क्यों नहीं बन सके?
गोस्वामी, नरेश (2017) संविधान की एक उत्तर-कथा : नीति निर्देशक सिद्धान्त मौलिक अधिकार क्यों नहीं बन सके? प्रतिमान (9). pp. 282-296.
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Introduction
ऑस्टिन भारतीय संविधान को ‘सामाजिक क्रान्ति का दस्तावेज़’ कहते हैं। यह लेख ऑस्टिन की इस धारणा पर नीति-निर्देशक सिद्धान्तों के कुछ विशेष उपबन्धों के सन्दर्भ में तो विचार करता ही है, साथ ही यह देखने का भी प्रयास करता है कि इन सिद्धान्तों में जिस सामाजिक क्रान्ति की कल्पना की गई थी वह किस सीमा तक फलीभूत हो पाई। इस अर्थ में यह लेख आंशिक तौर पर भारतीय राज्य-व्यवस्था के बदलते स्वरूप की पड़ताल भी करता है। नीति-निर्देशक सिद्धान्तों की इस संक्षिप्त पड़ताल से पता चलता है कि राज्य की बदलती भूमिका के साथ उसके आर्थिक और सामाजिक सरोकार बदल गए हैं, लेकिन अपने नैतिक कर्तव्य के तौर पर वह फिर भी कुछ मूल्यों, लक्ष्यों और आदर्शों की अभ्यर्थना करता रहता है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Development Studies |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Naresh Goswami |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3250 |
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