भारतीय नारीवाद और भिन्नता का प्रश्न
झा, विजय कुमार (2016) भारतीय नारीवाद और भिन्नता का प्रश्न प्रतिमान (7). pp. 258-273.
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Introduction
इस पर्चे में लेखक ने ख़ुद को वर्ग, नस्ल और जाति के आधार पर होने वाले विमर्शों को जेण्डरीय या नारीवादी आलोचना और उसके परिणामस्वरूप विकसित सैद्धान्तिक खाँचे तक सीमित रखा है। लेखक ने पर्चे की शुरुआत गर्डा लर्नर और उमा चक्रवर्ती के विमर्श से की है। इन दोनों इतिहासकारों ने अपने-अपने सामाजिक सन्दर्भों में यह जाहिर करने की कोशिश की है कि आज जिन सत्ता-संरचनाओं के बीच हम जी रहे हैं वे किस तरह से एक-दूसरे से आबद्ध हैं। पर्चे में पहले पश्चिमी सन्दर्भ लिया गया और फिर, भारतीय। पहले वर्ग, नस्ल और जेण्डर समीकरण आया है और उसके बाद वर्ग, जाति और जेण्डर समीकरण। इस पर्चे में लेखक का ज़ोर सत्ता-संरचनाओं की अन्तर्सम्बन्धता को समझने के लिए विकसित नारीवाद दृष्टिकोण के विवेचन पर रहा है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Development Studies Gender Science |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Vijay Kumar Jha |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3396 |
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ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.