भारतीय मानस का वि-औपनिवेशीकरण
शर्मा, अम्बिकादत्त (2018) भारतीय मानस का वि-औपनिवेशीकरण प्रतिमान (12). pp. 53-68.
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Introduction
इस लेख में मानसिक औपनिवेशीकरण के अर्थ, नुक़सान और उससे मुक्ति के उपाय बताए गए हैं। यह लेख औपनिवेशीकरण और यूरोपीयकरण की निष्पत्तियों की अलग-अलग व्याख्या करता है और इनके तीसरी दुनिया पर असर को दिखाता है। लेख इन प्रभावों से मुक्ति के लिए प्राचीन संस्कृति एवं परम्परा-बोध के विचारों को विकल्प के रूप में पेश करता है। यह अरविन्द घोष, निर्मल वर्मा, कृष्ण चन्द्र भट्टाचार्य व गाँधी आदि के विचारों के माध्यम से यूरोपीयकरण के गु़लामी के स्वरूपों को सम्बोधित करता है। इसमें भारतीय संस्कृति और सभ्यता के बारे में वैचारिक विश्लेषण है उन्हें फिर स्थापित करने की वकालत भी लेख में की गई है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Development Studies Political Science |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Ambikadutt Sharma |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3565 |
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Disclaimer
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ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.