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ज्ञात के ज़रिए अज्ञात को समझने की तीसरी दृष्टि : महिषासुर विमर्श पर बहस - प्रति उत्तर

जोठे, संजय (2018) ज्ञात के ज़रिए अज्ञात को समझने की तीसरी दृष्टि : महिषासुर विमर्श पर बहस - प्रति उत्तर प्रतिमान (12). pp. 82-110.

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ज्ञात के ज़रिये अज्ञात को समझने की तीसरी दृष्टि.pdf

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Introduction

यह लेख फुले-आम्बेडकरी दृष्टि से महिषासुर विमर्श में अब तक पेश किए गए विचारों की समीक्षा करता है। लेख मिथकों के बारे में हुई सर्वाधिक स्वीकृत खोजों और स्थापनाओं के माध्यम से मिथकों की खासियतों और विचित्रता को सामने रखता है। लेख मिथकों के पाठ को खोलता है और पुनर्पाठ के ज़रिये उनके लक्ष्यों व प्रभावों को प्रकट करता है। लेख भारतीय इतिहास के लेखन व दृष्टि की समस्याओं के वर्णन के साथ, इतिहास-बोध के प्रश्‍न को सामने लाता है। लेखक यहाँ ब्राह्मणवाद द्वारा सुविचारित व संगठित रूप से न्याय-बोध, तर्क-बोध व इतिहास बोध को प्रभावित करने वाली समझ को प्रस्तुत करता है।

Item Type: Article
Discipline: History
Programme: Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan
Creators(English): Sanjay Jothe
Publisher: CSDS, Delhi
Journal or Publication Title(English): Pratimaan
URI: http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3568
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Disclaimer

Translated from English to Hindi/Kannada by Translations Initiative, Azim Premji University. This academic resource is intended for non-commercial/academic/educational purposes only.

अनुवाद पहल, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित। इस अकादमिक संसाधन का उपयोग केवल ग़ैर-व्यावसायिक, अकादमिक एवं शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್‍ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್‍ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.