हिन्दी : विमर्श की भाषा बनाने की चुनौतियाँ
प्रियदर्शिनी, मुकुल (2018) हिन्दी : विमर्श की भाषा बनाने की चुनौतियाँ प्रतिमान (12). pp. 279-294.
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Introduction
यह लेख विमर्श की हिन्दी के विकास को प्रभावित करने वाले कारणों और चुनौतियों की पड़ताल व विश्लेषण करता है। यह हिन्दी क्षेत्र का दायरा व इसकी भाषायी विविधता की पहचान करते हुए, हिन्दी भाषा को सभी सन्दर्भों में बरते जाने की प्रासंगिकता को उजागर करता है। लेख में हिन्दी के विकास को प्रभावित करने वाले सैद्धान्तिक, व्यावहारिक, सरकारी, गै़र-सरकारी सभी प्रकार के कारणों की पड़ताल की गई है। लेख पत्रकारिता, अकादमिक और जनान्दोलनों की हिन्दी के अलग-अलग स्वरूपों की व्याख्या करते हुए हिन्दी को अकादमिक से लेकर बाज़ार तक के विमर्श की भाषा बनने की चुनौतियों का गहरा विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Language Education |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Mukul Priyadarshini |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3584 |
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Disclaimer
Translated from English to Hindi/Kannada by Translations Initiative, Azim Premji University. This academic resource is intended for non-commercial/academic/educational purposes only.
अनुवाद पहल, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित। इस अकादमिक संसाधन का उपयोग केवल ग़ैर-व्यावसायिक, अकादमिक एवं शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.