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भर्तृहरि और उनका भाषादर्शन

त्रिपाठी, राधावल्लभ (2017) भर्तृहरि और उनका भाषादर्शन प्रतिमान (9). pp. 67-90.

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भर्तृहरि और उनका भाषादर्शन.pdf

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Introduction

व्याकरणशास्त्र और दर्शन की परम्परा में ‘वाक्यपदीयम्’ के प्रणेता भर्तृहरि का एक मौलिक विचारक के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान है। दर्शन के सभी सम्प्रदायों के लिए यह ग्रन्थ अपने रचनाकाल के तुरन्त बाद ही एक चुनौती बना। अन्य किसी भी नवीन विचारों की तरह शुरुआत में भर्तृहरि के मत का मज़ाक बनाया है, लेकिन छठी सदी के बाद दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में भर्तृहरि को कोई भी गम्भीर विचारक अनदेखा नहीं कर सकता था। भर्तृहरि का उल्लेख करने वाले दार्शनिकों की एक लम्बी सूची बनाई जा सकती है, जिनमें भारतीय दर्शन परम्परा के स्तम्भ सम्मिलित हैं। यह लेख भारतीय दर्शन परम्परा में वाद-विवाद-संवाद के माध्यम हुई विकास यात्रा का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है।

Item Type: Article
Programme: Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan
Creators(English): Radhavallabh Tripathi
Publisher: CSDS, Delhi
Journal or Publication Title(English): Pratimaan
URI: http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3247
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Disclaimer

Translated from English to Hindi/Kannada by Translations Initiative, Azim Premji University. This academic resource is intended for non-commercial/academic/educational purposes only.

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ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್‍ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್‍ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.