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कुछ पिटे हुए अनुभव

जोशी, सुशील (2021) कुछ पिटे हुए अनुभव संदर्भ (137). pp. 45-53.

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Introduction

स्कूलों में शारीरिक दण्ड और अपमान एक नियमित मामले की तरह सामने आता है। बच्चे न केवल अपनी कोमल पीठ पर पाठ्य-पुस्तकों और नोटबुक्स का भार ढोते हैं, बल्कि मूर्खतापूर्ण कारणों के लिए बेंत का खामियाज़ा भी भुगतते हैं जैसे जूते का मेल नहीं खाना या फ़ीता बँधा नहीं होना। बच्चा आस-पास की घटनाओं को देखता है, सोचता है और उसकी नक़ल करता है या प्रतिक्रिया करता है। बच्चे यह मानने लग सकते हैं कि हिंसा करना अच्छा है। आज भी तमाम नियम-कानूनों के बावजूद भारत समेत कई देशों में अनुशासन के नाम पर पिटाई, स्कूली शिक्षा का अभिन्न हिस्सा है। प्रत्येक शिक्षक को लगता है कि उसे बच्चे को अनुशासित करने का पूरा अधिकार है। क्या इस हिंसा के पीछे सामाजिक या भावनात्मक कारण व ग्रन्थियाँ हैं? इस महत्त्वपूर्ण लेख में लेखक के अपने और अपने दोस्तों के इन्हीं मुद्दों पर अनुभव हैंं जो आजीवन मस्तिष्क पर छाप छोड़े हुए हैं।

Item Type: Article
Discipline: Education
Programme: Works of Partner Organisations > Eklavya Foundation > Sandarbh
Creators(English): Sushil Joshi
Publisher: Eklavya Foundation
Journal or Publication Title(English): Sandarbh
URI: http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/1457
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Disclaimer

Translated from English to Hindi/Kannada by Translations Initiative, Azim Premji University. This academic resource is intended for non-commercial/academic/educational purposes only.

अनुवाद पहल, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित। इस अकादमिक संसाधन का उपयोग केवल ग़ैर-व्यावसायिक, अकादमिक एवं शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್‍ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್‍ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.