भारत में प्राक्-इतिहास की निरंतरता
कोसम्बी, दामोदर धर्मानन्द (2013) भारत में प्राक्-इतिहास की निरंतरता प्रतिमान, 1 (2). pp. 830-839.
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Introduction
इस आलेख में लेखक ने प्राक् इतिहास लेखन की सीमाओं का उल्लेख करते हुए ऐतिहासिक निरन्तरता की वजह से आदिम समाज के महत्व की चर्चा की है। उन्होंने खान-पान; रीति-रिवाज व कर्मकाण्ड के ऐतिहासिक स्रोत के रूप में इस्तेमाल इस बारे में ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में पेश किया है। अग्निपरीक्षा; प्रजनन कर्मकाण्ड; पण्ढरपुर यात्रा की उल्लेख करते हुए खेतिहर, पशुपालक व आदिवासी समाजों के रीति-रिवाज़, कर्मकाण्ड व आपसी रिश्ते के तुलनात्मक शोध का प्राक्-इतिहास लेखन में उपयोग की बात की है। म्हतोबा; जोगाबाई के पूजा, कर्मकाण्ड के सहारे उन्होंने यह कहा है कि आदिम व पृथ समाज पर सार्वभौम प्रथा थोपना उचित नहीं है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Social Science Education |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Damodar Dharmananda Kosambi |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan |
Contributors: | अनुवाद : नरेश गोस्वामी |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3083 |
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