जनपदीयता : आत्मगत और वस्तुगत
कोह्न, बरनार्ड एस. (2013) जनपदीयता : आत्मगत और वस्तुगत प्रतिमान, 1 (2). pp. 840-865.
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Introduction
इस आलेख में भारतीय समाज व इतिहास के अध्ययन में जनपदीयता के महत्व की चर्चा की गयी है। जनपदीयता के अस्थिर गतिशील चरित्र को रेखांकित करते हुए उसकी वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन की मुश्किलों की चर्चा है। जनपद के भूगोल आधारित बताने पर भी इसे मूल रूप से गैर-भौतिक परिघटना बताते हुए इसके ऐतिहासिक; भाषाई; सांस्कृतिक; सामाजिक-संरचनात्मक घटकों व उनकी पारस्परिकता की चर्चा की गयी है। पश्चिमीकरण आधुनिकीकरण व क्षेत्रीयता के बीच के रिश्ते के साथ ही इसकी संरचनात्मक व सांस्कृतिक पूर्व-अपेक्षाओं की चर्चा की गयी है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु व बंगाल के हवाले से जनपदीयता के निर्माण पर धार्मिक-साहित्यिक आन्दोलन; मुद्रण तकनीक व अभिजनों की भूमिका का भी उल्लेख किया गया है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Social Science Education |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Bernard S. Kohn |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan: |
Contributors: | अनुवाद : नरेश गोस्वामी |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3084 |
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