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महिषासुर-विमर्श : एक बार फिर मिथकीय पुनर्पाठ

जोठे, संजय (2016) महिषासुर-विमर्श : एक बार फिर मिथकीय पुनर्पाठ प्रतिमान (7). pp. 107-130.

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महिषासुर-विमर्श - एक बार फिर मिथकीय पुनर्पाठ.pdf

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Introduction

हमारे सार्वजानिक जीवन की सांस्कृतिक राजनीति में खलबली मचाने वाले महिषासुर-विमर्श के कारण हिन्दू धर्म की मिथकीय संरचना और उस पर आधारित समाजशास्त्र के लिए ये बेचैनी के दिन हैं। महिषासुर आन्दोलन या इसके साथ आरम्भ हुए मिथकीय पुनर्पाठ का आन्दोलन कोई छोटी-सी या अकेली पहल नहीं है। इसकी ऐतिहासिक दार्शनिक और धार्मिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि बहुत विराट है। पूरी विमर्श यात्रा में यह लेख तीन दावे करना चाहता है - पहला, देव-असुर संग्राम के बहुत पहले ही आर्य और कोयवंशी गोण्ड संग्राम हो चुका था, दूसरा, गोण्डों के सम्भुसेक, असुरों के महिषासुर और ब्राह्मणी धर्म के महादेव एक ही व्यक्ति या संस्था हैं और आज के शिव उनका ब्राह्मणकृत रूप हैं। तीसरा, श्रवण दर्शन और पारी कुपार लिंगो का पुनेम दर्शन आपस में जुड़े हैं। अपने दावों को पुख़्ता करने के लिए लेख प्राचीन पाठों की यात्रा कर सन्दर्भ देता है।

Item Type: Article
Discipline: Development Studies
Sociology
Programme: Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan
Creators(English): Sanjay Jothe
Publisher: CSDS, Delhi
Journal or Publication Title(English): Pratimaan
URI: http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3393
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Disclaimer

Translated from English to Hindi/Kannada by Translations Initiative, Azim Premji University. This academic resource is intended for non-commercial/academic/educational purposes only.

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ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್‍ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್‍ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.