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समान नागरिक संहिता : सवाल और सम्भावनाएँ

गोस्वामी, नरेश (2017) समान नागरिक संहिता : सवाल और सम्भावनाएँ प्रतिमान (10). pp. 39-54.

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समान नागरिक संहिता - सवाल और सम्भावनाएँ.pdf

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Introduction

लेखक का तर्क है कि समान नागरिक संहिता के विमर्श से सम्बन्धित विभिन्‍न पक्षों और दलीलों को समग्र संरचना की तरह देखा जाए, ताकि उसके इतिहास से गुज़रते हुए मौजूदा परिदृश्य का अवलोकन किया जा सके। साथ ही यह कि यह कोई शाश्वत या स्थिर संहिता नहीं होती बल्कि मूलत: न्याय की एक सर्वसमावेशी दृष्टि है जिसमें परिस्थितियों के अनुसार बदलाव करने की गुंजाइश होनी चाहिए। इस लेख के माध्यम से वैश्विक और भारत के स्तर पर नागरिक संहिता में जेण्डर-न्याय की पड़ताल की गई है। मुस्लिम समुदाय में व्याप्त जड़तापूर्ण ढाँचे के बीच बदलाव के आग्रह तलाशने की कोशिशों की चर्चा भी की गई है।

Item Type: Article
Discipline: Development Studies
Political Science
Programme: Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan
Creators(English): Naresh Goswami
Publisher: CSDS, Delhi
Journal or Publication Title(English): Pratimaan
URI: http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3527
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Disclaimer

Translated from English to Hindi/Kannada by Translations Initiative, Azim Premji University. This academic resource is intended for non-commercial/academic/educational purposes only.

अनुवाद पहल, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित। इस अकादमिक संसाधन का उपयोग केवल ग़ैर-व्यावसायिक, अकादमिक एवं शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್‍ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್‍ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.