राष्ट्रवाद पर बहस : लोकतांत्रिक संवाद का संकट
कौशिक, आशा (2016) राष्ट्रवाद पर बहस : लोकतांत्रिक संवाद का संकट मूल प्रश्न. pp. 36-40.
Fulltext Document
राष्ट्रवाद पर बहस - लोकतांत्रिक संवाद का संकट .pdf Download (326kB) |
Introduction
यह लेख राष्ट्रवाद की कई व्याख्याओं और देश-काल-परिस्थिति में बदलते इसके राजनीतिक प्रयोगों की लोकतांत्रिक मूल्यों के आलोक में चर्चा करता है। आज हमारे देश में राष्ट्रवाद एक मुख्यधारा की बहस और लोकतांत्रिक दमन का हथियार बना दिया गया है। राजनीतिक बहस से हटकर लेखक ने यहाँ राष्ट्रवाद क्या है और आम लोगों को इससे किस हद तक सरोकार रखना चाहिए? भारत और भारतीय राष्ट्रवाद का विचार कोई संक्षिप्त आख्यान नहीं है जैसे मुद्दों पर चर्चा की है। लेखक राष्ट्रवाद को एक बहुआयामी और गतिशील प्रवाह के रूप में देखते हुए उसके निरन्तर एवं परिवर्तनशील रूप को अपनाने की सलाह देते हैं।
Item Type: | Article |
---|---|
Discipline: | Development Studies History Political Science |
Programme: | Works of Partner Organisations > Moolprashna > Moolprashna |
Publisher: | Mool Prashna |
Journal or Publication Title(English): | Mool Prashna |
Contributors: | Asha Kaushik |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3731 |
Edit Item |
Disclaimer
Translated from English to Hindi/Kannada by Translations Initiative, Azim Premji University. This academic resource is intended for non-commercial/academic/educational purposes only.
अनुवाद पहल, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित। इस अकादमिक संसाधन का उपयोग केवल ग़ैर-व्यावसायिक, अकादमिक एवं शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.