क्यों पढ़ाते थे वैसे?
केलकर, माधव (1997) क्यों पढ़ाते थे वैसे? संदर्भ (18). pp. 73-82.
Fulltext Document
क्यों पढ़ाते थे वैसे.pdf Download (749kB) |
Introduction
पढ़ाते समय शायद ही कभी हमारा ध्यान इस बात की ओर जाता हो कि हम कैसे पढ़ाते हैं या उसके बारे में विद्यार्थियों की क्या सोच है। शिक्षा के जमे-जमाए ढाँचे और पाठ्यक्रम के दबाव ने विद्यार्थियों और शिक्षकों को अपने शिकंजे में जकड़ा हुआ है और इस शिकंजे के भीतर भी पढ़ाई को किसी तरह चलाए रखने के लिए शिक्षक को कितने ही तरीक़े ईजाद करने होते हैं। इनमें से एक तरीक़ा विद्यार्थियों का एक-दूसरे की कॉपियाँ जाँचना है। इस तरीक़े का रचनात्मक उपयोग भी हो सकता है। हमारी स्कूली शिक्षा के सन्दर्भ में बच्चों का अपने साथियों द्वारा सीखना भी एक रोचक पहलू है।
Item Type: | Article |
---|---|
Discipline: | Education |
Programme: | Works of Partner Organisations > Eklavya Foundation > Sandarbh |
Creators(English): | Madhav Kelakar |
Publisher: | Eklavya Foundation |
Journal or Publication Title(English): | Sandarbh |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/1765 |
Edit Item |
Disclaimer
Translated from English to Hindi/Kannada by Translations Initiative, Azim Premji University. This academic resource is intended for non-commercial/academic/educational purposes only.
अनुवाद पहल, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित। इस अकादमिक संसाधन का उपयोग केवल ग़ैर-व्यावसायिक, अकादमिक एवं शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.