राजनैतिक व्यवस्था टूट रही है
चतुर्वेदी, अरुण (2001) राजनैतिक व्यवस्था टूट रही है मूल प्रश्न. pp. 55-57.
Fulltext Document
राजनैतिक व्यवस्था टूट रही है.pdf Download (120kB) |
Introduction
राज्य से अपेक्षाओं और राजनैतिक व्यवस्था में आ रहे परिवर्तन लेख का मुख्य विषय है। राजनैतिक दलों के बीच के वैचारिक अन्तरों का क्षीण होना लेखक को चिन्ताजनक लगता है। इस लेख में लेखक वैचारिक राजनीति के अभाव और राजनीति में कट्टरपंथी और पुनरुत्थानवादी ताकतों के उभार के कारणों की पड़ताल करते हुए कई उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। राजनैतिक व्यवस्था के टूटन को समाज के ताने-बाने में टूटन के रूप में प्रस्तुत करते हुए लेख जनता को जिम्मेदारियों से आगाह भी कराता है।
Item Type: | Article |
---|---|
Discipline: | Development Studies Political Science |
Programme: | Works of Partner Organisations > Moolprashna > Moolprashna |
Creators(English): | Arun Chaturvedi |
Publisher: | Mool Prashna |
Journal or Publication Title(English): | Mool Prashna |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3163 |
Edit Item |
Disclaimer
Translated from English to Hindi/Kannada by Translations Initiative, Azim Premji University. This academic resource is intended for non-commercial/academic/educational purposes only.
अनुवाद पहल, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित। इस अकादमिक संसाधन का उपयोग केवल ग़ैर-व्यावसायिक, अकादमिक एवं शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।
ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.