विस्थापन का बोझ ढोती स्त्रियाँ : विकास परियोजनाओं की एक नारीवादी समीक्षा
मुस्कान, (2015) विस्थापन का बोझ ढोती स्त्रियाँ : विकास परियोजनाओं की एक नारीवादी समीक्षा प्रतिमान, 3 (1). pp. 222-224.
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Introduction
इस शोध पत्र के पीछे लेखक का उद्देश्य विकास और विस्थापन के पूरे ताने-बाने के भीतर स्त्रियों, ख़ासकर ग्रामीण और आदिवासी स्त्रियों, की स्थिति को सामने लाना है। विस्थापन की सम्पूर्ण प्रक्रिया का क्या कोई जेण्डर-आयाम भी है? भारतीय समाज में सदा-सर्वदा लैंगिक भेदभाव का शिकार रही स्त्रियाँ विस्थापन को कैसे महसूस करती हैं? क्या विस्थापन को लेकर स्त्रियों के अनुभव पुरुषों से भिन्न हैं? विस्थापितों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से निर्मित 'पुनर्वास तथा पुनर्संस्थापन' नीतियों में उनके लिए कितनी जगह है? इन्हीं सवालों के हल ढूँढ़ने के लिए लिखा गया यह शोध पत्र कुल पाँच भागों में बँटा हुआ है। विस्थापन के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों का अध्ययन करते हुए लेखक ने पाया कि किस प्रकार विस्थापन स्त्रियों को 'वंचितों में वंचित' की स्थिति में लाता है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Development Studies Sociology |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Smile |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3245 |
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ಅಜೀಂ ಪ್ರೇಮ್ಜಿ ವಿಶ್ವವಿದ್ಯಾಲಯದ ಅನುವಾದ ಉಪಕ್ರಮದ ವತಿಯಿಂದ ಇದನ್ನು ಇಂಗ್ಲೀಷ್ನಿಂದ ಕನ್ನಡಕ್ಕೆ ಅನುವಾದಿಸಲಾಗಿದೆ. ಈ ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಸಂಪನ್ಮೂಲವನ್ನು ವಾಣಿಜ್ಯೇತರ, ಶೈಕ್ಷಣಿಕ ಉದ್ದೇಶಗಳಿಗೆ ಬಳಸಬಹುದಾಗಿದೆ.