रूप और अरूप, सीमा और असीम : औपनिवेशिक उत्तर भारत में दलित-पौरुष
गुप्ता, चारु (2013) रूप और अरूप, सीमा और असीम : औपनिवेशिक उत्तर भारत में दलित-पौरुष प्रतिमान, 1 (1). pp. 99-125.
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Introduction
लेख में औपनिवेशिक उत्तर भारत में दलित-पौरुष पर विमर्श प्रस्तुत किया है। वर्चस्वशाली संस्कृति ने दलित जातियों के पुरुषों को निम्न, कमज़ोर, मुर्ख और मन्द बुद्धि के रूप में चित्रित किया, तो दूसरी ओर इसके विपरीत और विरोधाभासी रूप में उन्हें हिंसक, अपराधी, शराबी और कामलोलुप बनाकर पेश किया जाता रहा है। पर दलित पुरुष कोई अकर्मक प्राणी नहीं थे। ख़ुद दलित पुरुषों ने भी अपनी इस छवि बढ़ा देकर गढ़ा है। दलित पुरुषों ने सम्मान और सामाजिक न्याय के लिए भी लैंगिक दावे प्रस्तुत किये। दलितों के विभिन्न प्रयासों, विमर्शों और गतिविधियों में सामन्ती पुन्सत्व और मर्दानगी की झलक मिलती है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Development Studies Gender Science Political Science Sociology |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Charu Gupta |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3063 |
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