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दो ‘प्रगतिशील’ कानूनों की दास्तान : राज्य, जन-आन्दोलन और प्रतिरोध

चौबे, कमलनयन (2013) दो ‘प्रगतिशील’ कानूनों की दास्तान : राज्य, जन-आन्दोलन और प्रतिरोध प्रतिमान, 1 (1). pp. 149-177.

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दो ‘प्रगतिशील’ कानूनों की दास्तान - राज्य, जन-आन्दोलन और प्रतिरोध.pdf

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Introduction

इस शोध-आलेख में दो ऐसे कानूनों पर चर्चा की गई है, जिन्हें ‘प्रगतिशील कानून’ ‘ऐतिहासिक कानून’ कहा गया है। आलेख पाँच भागों में बँटा है। इसके पहले भाग में भारत के जंगलों की स्थिति और प्रभावी कानूनों का ऐतिहासिक विश्लेषण है। दूसरे भाग में 1996 के और तीसरे में 2006 के कानून बनने की प्रक्रिया बताई गई है। पाँचवें में इन कानूनों के बनने की प्रक्रिया की व्याख्या के लिए ‘हाशिया समाज’ या ‘मार्जिनल सोसायटी’ की संकल्पना का प्रयोग किया गया है। पाँचवें हिस्से में निष्कर्ष प्रस्तुत किए गए हैं। इस आलेख का मक़सद इस बात का विश्लेषण करना है कि उत्तर-उदारीकरण दौर में स्थानीय समुदायों को जंगल की जमीन या संसाधनों पर अधिकार देने वाले कानून बनाने की व्याख्या कैसे की जा सकती है।

Item Type: Article
Discipline: Development Studies
Law and Governanace
Political Science
Programme: Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan
Creators(English): Kamalnayan Choubey
Publisher: CSDS, Delhi
Journal or Publication Title(English): Pratimaan
URI: http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3064
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