अनुभव, स्थान और न्याय
गुरु, गोपाल (2013) अनुभव, स्थान और न्याय प्रतिमान, 1 (2). pp. 531-556.
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Introduction
इस आलेख में स्थान व अनुभव की प्रकृति उनकी संरचना उनके आपसी गत्यात्मक रिश्ते व सामाजिक न्याय पर उसके प्रतिफल की चर्चा है। सांस्कृतिक निर्मिति के रूप में स्थान किस तरह अनुभव सत्तामीमांसा व सम्प्रभुता संरचना को प्रभावित करता है इसका विश्लेषण है। भारतीय सन्दर्भ में गाँधी व अम्बेडकर के तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से समझाया गया है कि दोनों के अनुभव की भिन्नता ने किस तरह से उनके भारत की अवधारणा को तय किया व उनकी सामाजिक-राजनीतिक रणनीति को तय किया। पारम्परिक सामाजिक शक्तियों ने आधुनिकीकरण व शहरीकरण से किस तरह तालमेल कर स्थान व अनुभव को प्रभावित किया है।
Item Type: | Article |
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Discipline: | Social Sciences Political Science |
Programme: | Works of Partner Organisations > Centre for the Study of Developing Societies > Pratimaan |
Creators(English): | Gopal Guru |
Publisher: | CSDS, Delhi |
Journal or Publication Title(English): | Pratimaan |
URI: | http://anuvadasampada.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/3078 |
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Disclaimer
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